नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग पर कड़ी नाराजगी जताते हुए एक गैर सरकारी संगठन ‘यूनाइटेड वॉइस फॉर एजुकेशन फोरम’ पर 1 लाख रुपये का भारी जुर्माना ठोका है। यह मामला अल्पसंख्यक स्कूलों को शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम से बाहर रखने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2014 के फैसले को चुनौती देने से जुड़ा था। अदालत ने इस याचिका को “न्यायिक प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग” बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया।
जस्टिस बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान बेहद सख्त रुख अपनाया। कोर्ट का माहौल उस समय तनावपूर्ण हो गया जब न्यायमूर्ति नागरत्ना ने याचिकाकर्ता और वकीलों को फटकारते हुए कहा कि वे इस हरकत से “बेहद आक्रोशित” हैं। उन्होंने कठोर लहजे में पूछा—“किसी की हिम्मत कैसे हुई कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले को रिट याचिका के जरिए चुनौती दे?”
पीठ ने कहा कि इस तरह की याचिकाएं न केवल अदालत के समय की बर्बादी हैं बल्कि न्यायपालिका की पूरी व्यवस्था को कमजोर करने का प्रयास भी हैं। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा—“ऐसी याचिकाएं दायर कर देश की न्यायपालिका का स्तर नीचे न गिराएं। यह न्यायिक प्रक्रिया को ध्वस्त करने जैसा है।”
अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रिट याचिका के जरिए चुनौती देना कानून की स्थापित प्रक्रिया के खिलाफ है और ऐसा कोई मामला सुनवाई योग्य नहीं होता।
पीठ का गुस्सा यहीं शांत नहीं हुआ। जस्टिस नागरत्ना ने चेतावनी देते हुए कहा कि वे इस मामले में आपराधिक अवमानना की कार्रवाई से परहेज कर रहे हैं, लेकिन यह भविष्य के लिए सख्त संदेश है। उन्होंने वकीलों को भी कठघरे में खड़ा करते हुए पूछा—“अपने मुवक्किलों को आप किस तरह की सलाह दे रहे हैं?”
कोर्ट ने चेतावनी दी कि आगे से यदि गलत कानूनी सलाह देकर ऐसी याचिकाएं दायर की गईं तो वकीलों पर भी दंड लगाया जाएगा। पीठ ने कहा कि ऐसी याचिकाएं पूरी न्यायिक व्यवस्था को ठप कर सकती हैं और सुप्रीम कोर्ट की प्रक्रिया का मजाक उड़ाने के समान हैं।
