78वां वार्षिक निरंकारी संत समागम 31 अक्टूबर से समालखा में

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‘आत्ममंथन’ विषय पर होगा चार दिवसीय आध्यात्मिक आयोजन, देश-विदेश से जुड़ेंगे श्रद्धालु

हल्द्वानी। संत निरंकारी मिशन का 78वां वार्षिक निरंकारी संत समागम इस वर्ष 31 अक्टूबर से 3 नवम्बर 2025 तक संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा (हरियाणा) में भव्य रूप से आयोजित किया जा रहा है।

सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के पावन सान्निध्य में होने वाला यह समागम इस बार ‘आत्ममंथन’ की प्रेरणा पर आधारित है, जिसका उद्देश्य आत्मचिंतन और मानवता के प्रति आंतरिक जागरूकता को बढ़ावा देना है। लगभग 650 एकड़ क्षेत्र में फैले इस विशाल आध्यात्मिक आयोजन में देशभर से लाखों श्रद्धालु तथा विदेशों से लगभग 5,000 भक्त सम्मिलित होंगे। जो श्रद्धालु उपस्थित नहीं हो पाएंगे, वे निरंकारी मिशन की वेबसाइट और यूट्यूब चैनल के माध्यम से सीधा प्रसारण देख सकेंगे।

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समागम की सभी व्यवस्थाएं संत निरंकारी सेवादल के लगभग 1 लाख स्वयंसेवकों द्वारा की जा रही हैं, जो सितंबर से निरंतर सेवा में जुटे हैं। सेवादल लंगर, यातायात, चिकित्सा, सुरक्षा, पार्किंग और स्वच्छता सहित समस्त व्यवस्थाओं का संचालन कर रहा है। स्वास्थ्य सुविधा के लिए 8 एलोपैथिक, 6 होम्योपैथिक डिस्पेंसरी, 15 प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, एक कायरोप्रैक्टिक शिविर, और 120-बेड का अस्थायी अस्पताल बनाया गया है। आपात स्थितियों के लिए 42 एम्बुलेंस, जिनमें 5 वेंटिलेटर युक्त हैं, तैयार रहेंगी।

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हरियाणा सरकार के सहयोग से 60 चेक पोस्ट, अग्निशमन केंद्र, जल-विद्युत और सुरक्षा व्यवस्थाएं भी सुनिश्चित की गई हैं। श्रद्धालुओं के लिए 4 विशाल लंगर घर, 22 कैंटीन, और सुविधाजनक पार्किंग स्थल बनाए गए हैं। समागम के दौरान प्रतिदिन दोपहर 3 से रात 9 बजे तक भक्ति, संगीत और विचार प्रवाह से परिपूर्ण मुख्य कार्यक्रम आयोजित होंगे। ‘रूहानी कवि दरबार’ इस वर्ष भी विशेष आकर्षण रहेगा।

इस अवसर पर मिशन द्वारा ‘आत्ममंथन’ विषय पर आधारित निरंकारी प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी, जिसमें मिशन के इतिहास, विचारधारा, सामाजिक कार्यों और चैरिटेबल फाउंडेशन की गतिविधियों को प्रदर्शित किया जाएगा। साथ ही, प्रकाशन विभाग द्वारा साहित्य, डायरी, कैलेंडर एवं विशेष स्मारिका ‘आत्ममंथन’ भी उपलब्ध कराई जाएगी।

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संत निरंकारी मिशन की स्थापना 1929 में हुई, और 1948 से वार्षिक संत समागमों की परंपरा निरंतर जारी है। यह आयोजन केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि मानवता, प्रेम और एकता का उत्सव है, जो जीवन में समरसता और आध्यात्मिक चेतना का संदेश देता है।

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