महाकुंभ 2025 के प्रथम अमृत स्नान पर त्रिवेणी तट पर नागा साधुओं का प्रदर्शन श्रद्धालुओं के लिए मुख्य आकर्षण बना। परंपरा और अद्वितीय शस्त्र कौशल के प्रदर्शन के दौरान नागा साधुओं ने डमरू, भाले, तलवार और लाठियों के माध्यम से अपनी वीरता और अनुशासन का प्रदर्शन किया। इन साधुओं की गतिविधियां श्रद्धालुओं के लिए एक अलौकिक अनुभव रहीं।
ठंड में निर्वस्त्र साधुओं का अद्भुत साहस
जहां आम श्रद्धालु कड़ाके की सर्दी में अलाव तापते नजर आए, वहीं नागा साधु भस्म का लेप लगाकर निर्वस्त्र ठंड का सामना करते दिखे। भस्म का यह लेप उनके शरीर को ठंडी हवाओं से बचाने का काम करता है। साथ ही, उनका खानपान ऐसा होता है जिससे उनके शरीर में गर्माहट बनी रहती है।
निर्वस्त्र रहने की परंपरा और मान्यता
नागा साधुओं के निर्वस्त्र रहने के पीछे आध्यात्मिक और परंपरागत मान्यता है। कहा जाता है कि जब जगद्गुरु शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की, तो उन्होंने मठों की रक्षा के लिए वीर और निडर साधुओं की टोली बनाई, जो “नागा साधु” कहलाई। इन साधुओं का मानना है कि जैसे इंसान जन्म के समय निर्वस्त्र होता है, वैसे ही ईश्वर ने मनुष्य को प्राकृतिक अवस्था में भेजा है। इसी सत्य को स्वीकारते हुए वे कपड़े नहीं पहनते।
महाकुंभ में नागा साधुओं की परंपरा का महत्व
महाकुंभ में नागा साधुओं की भागीदारी आध्यात्मिकता, परंपरा और संस्कृति का प्रतीक है। उनका प्रदर्शन और भक्ति का अनोखा स्वरूप श्रद्धालुओं के लिए एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है, जो भारत की प्राचीन और गौरवशाली परंपरा की झलक पेश करता है।