नई दिल्ली। ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में बड़ा बदलाव करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रविवार को ‘विकसित भारत–रोजगार और आजीविका के लिए गारंटी मिशन (ग्रामीण): वीबी-जी राम जी विधेयक, 2025’ को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही यह विधेयक अब कानून बन गया है, जो दो दशक पुराने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की जगह लेगा।
केंद्र सरकार का कहना है कि नया कानून ‘विकसित भारत–2047’ के विजन के अनुरूप है और इसका उद्देश्य ग्रामीण रोजगार को केवल मजदूरी तक सीमित न रखकर उत्पादक, टिकाऊ और अवसंरचना निर्माण से जोड़ना है। सरकार के अनुसार इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक मजबूती मिलेगी।
नए अधिनियम की सबसे बड़ी खासियत यह है कि अब ग्रामीण परिवारों को प्रति वित्तीय वर्ष 125 दिनों के मजदूरी रोजगार की वैधानिक गारंटी दी जाएगी, जो मनरेगा में निर्धारित 100 दिनों से 25 दिन अधिक है। सरकार का दावा है कि इससे ग्रामीण परिवारों की आय सुरक्षा मजबूत होगी और उनकी आर्थिक स्थिरता बढ़ेगी।
विधेयक में मजदूरी भुगतान को साप्ताहिक या अधिकतम 15 दिनों के भीतर अनिवार्य किया गया है। भुगतान में देरी होने पर श्रमिकों को मुआवजा भी मिलेगा। इसके साथ ही कृषि मौसम को ध्यान में रखते हुए राज्यों को 60 दिनों की विराम अवधि का प्रावधान दिया गया है, ताकि बुवाई और कटाई के समय श्रमिकों की उपलब्धता बनी रहे।
नए कानून के तहत कार्यों को चार प्रमुख क्षेत्रों से जोड़ा गया है, जिनमें जल सुरक्षा, ग्रामीण अवसंरचना, आजीविका से जुड़ी परिसंपत्तियों का निर्माण और मौसम प्रतिकूलता से निपटने के उपाय शामिल हैं। वित्तीय व्यवस्था में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 60:40 की हिस्सेदारी तय की गई है, जबकि पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए यह अनुपात 90:10 होगा। साथ ही प्रशासनिक व्यय की सीमा 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत कर दी गई है।
हालांकि, इस कानून को लेकर राजनीतिक विवाद भी तेज हो गया है। सरकार जहां इसे ग्रामीण भारत के लिए ऐतिहासिक कदम बता रही है, वहीं विपक्ष ने मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाने और राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालने का आरोप लगाया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इसे ग्रामीण गरीबों के अधिकारों पर हमला करार दिया है।
गौरतलब है कि यह विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष के भारी विरोध के बीच पारित किया गया था। सरकार का कहना है कि रोजगार का अधिकार कमजोर नहीं बल्कि और मजबूत हुआ है, और परिसंपत्ति निर्माण पर जोर देकर ग्रामीण भारत को कल्याण से आगे बढ़ाकर विकास के रास्ते पर ले जाने का प्रयास किया गया है।
