देहरादून। सचिवालय प्रशासन द्वारा पारदर्शिता और बेहतर व्यवस्थाओं के नाम पर लागू की गई तबादला नीति खुद सवालों के घेरे में आ गई है। 31 जुलाई तक तबादले किए जाने की तय समयसीमा बीत गई, लेकिन सचिवालय सेवा के किसी भी अधिकारी-कर्मी का तबादला नहीं किया गया। इससे यह नीति महज कागजों तक सीमित रह गई प्रतीत हो रही है।
नई तबादला नीति के तहत अनुभाग अधिकारी से लेकर संयुक्त सचिव तक, समीक्षा अधिकारी, सहायक समीक्षा अधिकारी और कंप्यूटर सहायकों का वार्षिक स्थानांतरण 31 जुलाई तक किया जाना था। नीति में यह भी स्पष्ट किया गया था कि किसी भी कर्मचारी को एक ही अनुभाग में अधिकतम पांच वर्ष से अधिक तैनात नहीं रखा जाएगा। साथ ही, तबादला आदेश जारी होने के तीन दिन के भीतर कार्यभार ग्रहण करना अनिवार्य होगा, चाहे प्रतिस्थानी मौजूद हो या नहीं।
बावजूद इसके, अंतिम तारीख बीत जाने के बाद भी तबादलों की सूची जारी न होने से सचिवालय प्रशासन की नीयत पर सवाल उठ रहे हैं। वर्षों से एक ही अनुभाग में जमे अधिकारियों को लेकर कर्मचारी संगठनों ने पहले ही नाराज़गी जताई थी।
सचिवालय संघ के पूर्व अध्यक्ष दीपक जोशी ने तबादला नीति में कई खामियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि नीति तैयार करते समय कर्मचारी संगठनों से कोई परामर्श नहीं लिया गया। उन्होंने न्यूनतम सेवा अवधि का कोई प्रावधान न होने को भी बड़ी चूक बताया। इस संबंध में उन्होंने मुख्य सचिव और सचिव सचिवालय प्रशासन को पत्र भी लिखा है।
वहीं सचिवालय प्रशासन के सचिव दीपेंद्र चौधरी का कहना है कि तबादलों की सूची आवश्यकता के अनुसार बाद में जारी की जा सकती है। तबादलों के समय सभी नियमों का पालन किया जाएगा।
गौरतलब है कि सचिवालय में वर्ष 2007 में भी तबादला नीति बनाई गई थी, लेकिन वह भी धरातल पर उतरने से पहले ही ठंडे बस्ते में चली गई थी। ऐसे में अब एक बार फिर नई नीति की गंभीरता पर सवाल उठना लाजमी है।

