ऋषिकेश। भानियावाला-ऋषिकेश मार्ग चौड़ीकरण के नाम पर 3300 पेड़ों की कटाई के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू हो गया है। दो पद्मश्री सम्मानित हस्तियों, लोकगायिका और बड़ी संख्या में पर्यावरण प्रेमियों ने सड़क पर उतरकर चिपको आंदोलन 2.0 की घोषणा कर दी। प्रदर्शनकारियों ने पेड़ों से चिपककर उनके संरक्षण का संकल्प लिया और हस्ताक्षर अभियान भी चलाया।
पर्यावरणीय असंतुलन पर जताई चिंता
ऋषिकेश से भानियावाला तक 21 किलोमीटर लंबी सड़क को 600 करोड़ रुपये की लागत से फोरलेन किया जाना प्रस्तावित है। लेकिन इस परियोजना में 3300 पेड़ों की बलि चढ़ने वाली है। हाल ही में इन पेड़ों की छंटाई का काम शुरू हुआ, जिसे लेकर पर्यावरणविदों और स्थानीय नागरिकों में भारी रोष है।
रविवार को सात मोड़ क्षेत्र में विभिन्न संगठनों से जुड़े लोग एकत्र हुए। उन्होंने कहा कि देहरादून और आसपास के क्षेत्रों में तेजी से बढ़ते तापमान, घटते भूजल स्तर और खराब होती वायु गुणवत्ता के बावजूद सरकार बिना किसी दीर्घकालिक पर्यावरणीय योजना के विकास परियोजनाएं चला रही है।
पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधकर लिया संकल्प
प्रदर्शनकारियों ने पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधकर उनकी रक्षा करने का संकल्प लिया और कहा कि यह आंदोलन अब लंबा चलेगा। प्रदर्शन में शामिल लोगों ने कहा, “उत्तराखंड के लोग वर्षों से जंगलों की अंधाधुंध कटाई और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का विरोध कर रहे हैं, लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। अब हम चिपको आंदोलन 2.0 के जरिए पर्यावरण की रक्षा करेंगे।”
प्रदर्शन में ये प्रमुख लोग रहे शामिल
- पद्मश्री डॉ. माधुरी बर्तवाल
- पद्मश्री कल्याण सिंह रावत
- लोकगायिका कमला देवी
- इरा चौहान, अनूप नौटियाल, सूरज सिंह नेगी, नितिन मलेथा, इंद्रेश मैखुरी समेत कई पर्यावरण कार्यकर्ता
प्रदर्शनकारियों की मांगें
- ऋषिकेश-जौलीग्रांट हाईवे परियोजना के तहत 3300 पेड़ों की कटाई पर तत्काल रोक लगाई जाए।
- देहरादून और इसके आसपास के पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में वनों के व्यावसायिक उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए और भविष्य की सभी परियोजनाओं में सतत विकास को प्राथमिकता दी जाए।
- देहरादून की पारंपरिक नहरों का संरक्षण और पुनरुद्धार किया जाए, ताकि भूजल स्तर को बनाए रखा जा सके और तापमान नियंत्रित किया जा सके।
- रिस्पना, बिंदाल और सौंग जैसी प्रमुख नदियों को पुनर्जीवित किया जाए और इन्हें प्लास्टिक कचरे व अनुपचारित सीवेज से बचाया जाए।
- हरे भरे स्थानों को बढ़ावा देने के लिए सख्त नियम लागू किए जाएं। नई आवासीय और व्यावसायिक परियोजनाओं में कम से कम 25% भूमि हरित क्षेत्र के लिए आरक्षित हो।
- वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए त्वरित कार्रवाई की जाए।
- 1980 के वन अधिनियम में संशोधन कर जंगलों में लगने वाली आग को रोकने के लिए प्रभावी रणनीतियां अपनाई जाएं।
आंदोलन तेज करने की चेतावनी
प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानीं, तो यह आंदोलन और तेज किया जाएगा। उन्होंने सरकार से अपील की कि विकास के नाम पर पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाया जाए और वैकल्पिक समाधान तलाशे जाएं।