नई दिल्ली। भारत में बुखार से लेकर थकान तक हर समस्या का ‘तुरंत समाधान’ बन चुकी डोलो-650 गोली इन दिनों सोशल मीडिया पर सुर्खियों में है। इसकी शुरुआत अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. पलानीअप्पन मणिक्कम के एक ट्वीट से हुई, जिसमें उन्होंने लिखा—“भारतीय डोलो-650 को कैडबरी जेम्स की तरह खाते हैं।” यह ट्वीट तो हल्के-फुल्के अंदाज़ में था, लेकिन इसने भारत में दवाओं के अत्यधिक और बेवजह इस्तेमाल पर गंभीर बहस छेड़ दी है।
डोलो-650, जिसे माइक्रो लैब्स बनाता है, दरअसल पैरासिटामोल की 650 मिलीग्राम की खुराक है, जो आमतौर पर मिलने वाली 500mg की गोली से ज्यादा असरदार मानी जाती है। कोविड-19 महामारी के दौरान, खासकर दूसरी लहर में, जब बुखार और वैक्सीन के दुष्प्रभावों से राहत के लिए पैरासिटामोल की मांग बढ़ी, तब डोलो-650 घर-घर में आम हो गई। एक रिपोर्ट के अनुसार, उस समय इसकी बिक्री रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थी।
दवा या आदत?
अब हालात यह हैं कि लोग डोलो-650 सिर्फ बुखार ही नहीं, बल्कि सिरदर्द, थकान, मानसिक तनाव और यहां तक कि ‘सावधानी के तौर पर’ भी खा रहे हैं। अधिक चिंताजनक बात यह है कि लोग यह दवा बिना किसी चिकित्सकीय सलाह के लगातार ले रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार और बेवजह पैरासिटामोल लेने से शरीर को इसकी आदत लग सकती है, जिससे लीवर पर गंभीर असर पड़ता है। डोलो जैसी दवाओं का बार-बार सेवन लीवर डैमेज और लीवर फेलियर तक का कारण बन सकता है। डॉक्टरों की राय है कि भारत में “पिल-पॉपिंग कल्चर” पर रोक लगाने की सख्त जरूरत है।
क्या कहती है मेडिकल गाइडलाइन?
पैरासिटामोल को आमतौर पर सुरक्षित दवा माना जाता है, लेकिन इसकी खुराक और समय-सीमा का ध्यान रखना जरूरी होता है। एक दिन में 3 से 4 ग्राम से ज्यादा पैरासिटामोल लेना खतरनाक हो सकता है। इसके बावजूद, जब यह गोली ‘गोलगप्पों’ की तरह खाई जाने लगे, तो यह महज एक आदत नहीं, बल्कि स्वास्थ्य संकट का संकेत बन जाती है।
निष्कर्ष: जागरूकता की जरूरत
डोलो-650 पर चल रही यह बहस एक चेतावनी है—दवा का सही समय, सही खुराक और सही कारण के बिना सेवन खुद को खतरे में डालने जैसा है। भारतीयों को अब दवाओं को ‘कॉमन कैन्डी’ की तरह लेने की आदत पर पुनर्विचार करना होगा।