हल्द्वानी। उत्तराखंड सरकार भले ही समय-समय पर यह आदेश जारी करती रहती हो कि सरकारी चिकित्सक मरीजों को बाहरी दवाएं न लिखें, लेकिन अस्पतालों में हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। ऐसे ही एक मामले में कुमाऊँ के सबसे बड़े डॉ. सुशीला तिवारी अस्पताल (एसटीएच) में आर्थोपेडिक विभाग के चिकित्सक पर गंभीर आरोप लगे हैं।
जानकारी के अनुसार वरिष्ठ पत्रकार भुवन जोशी की धर्मपत्नी भगवती देवी घुटनों में सूजन की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंचीं। उन्हें देखने के बाद आर्थोपेडिक विभाग के एक चिकित्सक (असिस्टेंट प्रोफेसर) ने बाहरी दवाओं की एक लंबी सूची थमा दी। यही नहीं, उन्होंने बताया कि एक विशेष इंजेक्शन लगाना पड़ेगा जिसकी कीमत 1000 रुपये है और वह दोपहर 2 बजे के बाद उन्हें निजी ईजा अस्पताल में लगवाएंगे, जहां वे अपनी सेवाएं देते हैं।
मामला जब वरिष्ठ पत्रकार से जुड़ा होने के चलते सार्वजनिक हुआ तो अस्पताल प्रशासन हरकत में आया। इसकी जानकारी जब वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. अरुण जोशी को दी गई तो उन्होंने लिखित शिकायत देने को कहा और कार्रवाई का आश्वासन दिया।
यह मामला भले ही सामने आ गया हो, लेकिन सवाल उठता है कि जिन मरीजों की कोई पहुँच नहीं होती, उनके साथ हर रोज़ किस तरह का व्यवहार होता होगा? चिकित्सक जहां सरकार से वेतन और नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस लेते हैं, वहीं निजी अस्पतालों में मरीजों को भेजकर अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं।
इस तरह की घटनाएं न केवल सरकारी अस्पतालों की छवि धूमिल करती हैं बल्कि आमजन का भरोसा भी कमजोर करती हैं। स्वास्थ्य विभाग को इस मामले की गंभीरता से जांच कर दोषी चिकित्सकों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके।
