नैनीताल। देहरादून के बहुचर्चित अनुपमा गुलाटी हत्याकांड में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अहम फैसला सुनाते हुए दोषी पति राजेश गुलाटी को निचली अदालत से मिली आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने राजेश गुलाटी की अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत के निर्णय को सही ठहराया।
राजेश गुलाटी, जो पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। सुनवाई के दौरान अदालत ने मामले से जुड़े सभी तथ्यों, साक्ष्यों और निचली अदालत के आदेशों का गहन परीक्षण किया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला अत्यंत जघन्य, क्रूर और समाज को झकझोर देने वाला अपराध है, जिसमें सजा में किसी प्रकार की नरमी का कोई आधार नहीं बनता।
मामले के अनुसार, 17 अक्तूबर 2010 को राजेश गुलाटी ने अपनी पत्नी अनुपमा गुलाटी की निर्मम हत्या कर दी थी। हत्या के बाद आरोपी ने शव के 72 टुकड़े कर उन्हें डी-फ्रिज में छिपा दिया था। यह सनसनीखेज वारदात 12 दिसंबर 2010 को उस समय उजागर हुई, जब अनुपमा का भाई दिल्ली से देहरादून पहुंचा और घर में संदिग्ध हालात देख पुलिस को सूचना दी।
इस मामले में देहरादून की निचली अदालत ने 1 सितंबर 2017 को राजेश गुलाटी को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। साथ ही अदालत ने 15 लाख रुपये का अर्थदंड भी लगाया था। आदेश के अनुसार, 70 हजार रुपये राजकीय कोष में जमा कराने और शेष राशि अनुपमा के बच्चों के बालिग होने तक बैंक में सुरक्षित रखने के निर्देश दिए गए थे।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि इस प्रकार के जघन्य अपराधों में कठोर दंड न केवल न्याय की मांग है, बल्कि समाज में कानून का भय बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है। हाईकोर्ट के इस फैसले के साथ ही अनुपमा गुलाटी हत्याकांड में राजेश गुलाटी की उम्रकैद की सजा अंतिम रूप से बरकरार हो गई है।
