सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: दूसरी शादी वैध न होने पर भी महिला को मिलेगा भरण-पोषण

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि भले ही किसी महिला की पहली शादी वैधानिक रूप से चल रही हो, वह अपने दूसरे पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को पलट दिया, जिसमें महिला को दूसरे पति की कानूनी पत्नी मानने से इनकार किया गया था।

महिला के वकील ने दिए ये तर्क
पीड़िता के वकील ने तर्क दिया कि उनकी मुवक्किल और प्रतिवादी पति पति-पत्नी की तरह साथ रह रहे थे और उनकी एक बेटी भी है। उन्होंने यह भी बताया कि पहले पति की जानकारी प्रतिवादी से छिपाई नहीं गई थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण का अधिकार पत्नी को मिलने वाला कोई विशेष लाभ नहीं, बल्कि पति का नैतिक और कानूनी दायित्व है।

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क्या है पूरा मामला
महिला की पहली शादी 1999 में हुई थी और 2000 में उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया। 2005 में दोनों अलग हो गए और 2011 में करारनामे के जरिए विवाह खत्म कर लिया गया। इसके बाद महिला ने दूसरी शादी की। कुछ समय बाद दूसरा पति विवाह खत्म करने के लिए पारिवारिक अदालत पहुंचा, जिसने 2006 में विवाह को अमान्य घोषित कर दिया। बावजूद इसके महिला और प्रतिवादी ने साथ रहना जारी रखा और 2008 में उन्हें एक बेटी हुई। बाद में मतभेद के चलते महिला ने दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया और भरण-पोषण के लिए अदालत का रुख किया।

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हाईकोर्ट ने किया था इनकार
पारिवारिक अदालत ने महिला के पक्ष में भरण-पोषण का आदेश दिया था, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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सुप्रीम कोर्ट का तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सामाजिक कल्याण के प्रावधानों की व्याख्या उदार और लाभकारी दृष्टिकोण से होनी चाहिए। न्यायालय ने यह भी कहा कि महिलाओं और बच्चों की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना कानून का उद्देश्य है।

न्यायालय का संदेश
यह फैसला उन महिलाओं के लिए राहत लेकर आया है जो पहली शादी के समाप्त होने के बाद भी दूसरी शादी में उत्पन्न विवादों के चलते वित्तीय समस्याओं का सामना करती हैं।