भारत में होली सिर्फ रंगों और उमंग का पर्व नहीं, बल्कि आस्था और चमत्कार का संगम भी है। ऐसा ही एक अनोखा उत्सव ब्रज क्षेत्र के फालैन गांव में देखने को मिलता है, जहां होलिका दहन के दौरान एक पुजारी जलती आग के बीच से सकुशल गुजरता है। यह अद्भुत परंपरा सदियों से चली आ रही है और हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनी हुई है।
होलिका दहन की अनूठी परंपरा
फालैन गांव में होली से पहले गोबर के कंडों (उपलों) का विशाल ढेर तैयार किया जाता है, जिसे “उपले का पहाड़” भी कहा जाता है। इस ढेर में अग्नि प्रज्वलित की जाती है, जो पूरी रात जलती रहती है। मान्यता के अनुसार, अगले दिन मंदिर के पुजारी विशेष पूजा-अर्चना के बाद जलती हुई आग के बीच से गुजरते हैं और उन्हें एक खरोंच तक नहीं आती।
प्रह्लाद मंदिर और कुंड की पौराणिक मान्यता
गांव के बाहरी हिस्से में स्थित प्रह्लाद मंदिर और पास का पवित्र कुंड इस आयोजन को और अधिक आध्यात्मिक महत्व प्रदान करता है। मान्यता है कि इसी कुंड में भक्त प्रह्लाद की मूर्ति और माला प्रकट हुई थी। होलिका दहन से पहले, पुजारी इस कुंड में स्नान कर प्रह्लाद जी की माला धारण करते हैं और फिर आग के बीच से गुजरते हैं।
सख्त नियमों का पालन
इस अनुष्ठान को करने वाले पुजारी 40-45 दिनों तक कठोर ब्रह्मचर्य और व्रत का पालन करते हैं। इस दौरान वे सात्विक आहार और धार्मिक अनुष्ठानों में लीन रहते हैं। मान्यता है कि यह तपस्या और प्रह्लाद जी की कृपा उन्हें अग्नि से सुरक्षित रखती है।
गांववालों के लिए श्रद्धा और चमत्कार का संगम
फालैन गांव की होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि आस्था और ईश्वरीय चमत्कार का जीवंत प्रमाण है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस अनूठी परंपरा को देखने के लिए यहां जुटते हैं। गांववाले इसे भक्त प्रह्लाद की भक्ति और भगवान की कृपा का प्रतीक मानते हैं।
फालैन की होली, जिसमें आग भी भक्ति के आगे नतमस्तक हो जाती है, देशभर में इसे अनोखा बनाती है।