देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गुरुवार को भाजपा के सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री का तमगा जरूर हासिल कर लिया, लेकिन चार साल के शासन में उन्होंने राज्य को कितनी स्थायी उपलब्धियां दीं, यह सवाल अभी भी खुला है। प्रचार और घोषणाओं में भले ही उनका नाम राष्ट्रीय फलक पर चमका हो, मगर जमीनी सच्चाई सवालों के घेरे में है।
धामी को जब 2021 में मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई थी, तब इसे युवा नेतृत्व और स्थिरता का प्रयोग कहा गया। लेकिन चार सालों में न तो पलायन थमा, न ही बेरोजगारी की समस्या हल हुई। जिस UCC को उपलब्धि बताया जा रहा है, उसकी वजह से सामाजिक तनाव और भ्रम की स्थिति बढ़ी है।
कानून तो बने, पर असर कहां है?
- नकल विरोधी कानून: धूमधाम से लागू किया गया, लेकिन इसके बावजूद परीक्षा घोटालों की खबरें थमी नहीं। सरकारी भर्तियों में पारदर्शिता अब भी सवालों में है।
- धर्मांतरण और दंगों पर सख्त कानून: इन कानूनों को तो लाया गया, लेकिन इसका ज़्यादा इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए हुआ, ऐसा विपक्ष का आरोप है। सामाजिक विभाजन की खाई और गहरी हुई।
- गैंगस्टर एक्ट में बदलाव: धामी सरकार ने दिखाने को कानून तो बनाए, पर संगठित अपराध, नशा तस्करी और भूमि माफिया का प्रभाव अभी भी कई जिलों में हावी है।
घोषणाएं ज़्यादा, अमल कम
चार सालों में योजनाओं की झड़ी तो लगी—‘एप्पल मिशन’, ‘कीवी मिशन’, ‘हाउस ऑफ हिमालयाज’ जैसे आकर्षक नाम दिए गए, लेकिन अधिकांश योजनाएं कागज़ों में ही सीमित रहीं। पलायन आज भी पहाड़ का सबसे बड़ा संकट बना हुआ है। 23 हजार पदों पर भर्तियों का दावा जरूर किया गया, मगर बेरोजगार युवा आज भी प्रदर्शन कर रहे हैं। परीक्षा पेपर लीक की घटनाओं ने सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए।
प्रधानमंत्री की तारीफ, लेकिन जनता की निराशा
प्रधानमंत्री मोदी भले ही धामी की पीठ थपथपा चुके हों, लेकिन राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हुई हैं, सड़कों की हालत बदतर है और आपदाओं से निपटने में सरकारी तंत्र की नाकामी बार-बार उजागर हुई है।
आंदोलनकारी और महिला आरक्षण का फैसला भी अधूरा
राज्य आंदोलनकारियों और महिलाओं को आरक्षण की घोषणाएं हुईं, लेकिन इन्हें लेकर सरकारी विभागों में भ्रम की स्थिति बनी रही। आरक्षण के लाभ जमीनी स्तर तक नहीं पहुंच पाए।