नई दिल्ली: गैंगरेप मामलों में साझा आपराधिक मंशा की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि यदि अभियुक्तों के बीच साझा इरादा सिद्ध हो जाए, तो भले ही दुष्कर्म केवल एक आरोपी ने किया हो, सभी को गैंगरेप के अपराध का दोषी ठहराया जा सकता है।
यह फैसला मध्य प्रदेश के एक 2004 के बहुचर्चित महिला अपहरण और गैंगरेप केस में सुनाया गया, जिसमें आरोपियों राजू और जलंधर कोल पर मुकदमा चला था। घटना के अनुसार, पीड़िता को विवाह समारोह से लौटते समय अगवा कर विभिन्न स्थानों पर अवैध रूप से बंधक बनाकर सामूहिक दुष्कर्म किया गया था।
ट्रायल कोर्ट ने दोनों आरोपियों को दोषी करार देते हुए राजू को उम्रकैद और जलंधर कोल को 10 साल के कारावास की सजा सुनाई थी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का फैसला बरकरार रखा। इसके बाद राजू ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
अपील को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ ने कहा, “भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(g) के तहत यदि एक से अधिक व्यक्ति साझा मंशा से अपराध में शामिल हों, तो यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक ने दुष्कर्म किया हो। एक व्यक्ति द्वारा किया गया दुष्कर्म, यदि साझा इरादे से हो, तो सभी को दोषी ठहराया जा सकता है।”
इस फैसले को कानून विशेषज्ञ अहम मान रहे हैं, क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि सामूहिक अपराधों में ‘साझा मंशा’ की अवधारणा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी, जिससे संगठित अपराधों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त होगा।